Doctor Ranjita Pandey: Gale ke cancer ko mat di Unke jine ka andaz jashn ka andaz

जिंदगी की सोच का अंदाज़, जीत का अंदाज़।
बच्चे डरते नही है शेर के पिंजरे में  छोड़ दो तो वो शेर से भी खेलने का प्रयास करता है यही अंदाज़ होना चाहिए जीवन जीने  का बच्चो को कल का डर नही लगता, बच्चे कुछ भी मन मे नही रखत।  तुरन्त भूल जाते है। बस यही जीवन जीने का सही तरी का ह।  डर तब लगता है जब आप किसी चीज़ को बड़ा बना लो अगर आप को यही मॉलूम नही की परेशानियों को बड़ा केसे  बनाया जाय तो सचमुच परेशानी छोटी की छोटी रह कर  ही मर जाती है । बेचारी परेशानी।डॉक्टर रंजीता पांडे  को यह मॉलूम ही नही की परेशानियों को बड़ा कैसे बनाया जाय और उनकी सारी परेशानियां बेमौत मर जाती है। बहुत मासूमियत है उनमें सचमुच जीवन को इतना ही सरलता से जी लेती है।जीवन जीने का यह अंदाज़ बेहद शानदार है रंजीता जी का जीवन  को सोच कर नही  बस हमेशा जीत कर जीती है। आज जीस बात का हम जिक्र कर रहे है उनके जीवन की यह घटना बहुत भयावह है जब इनको मालूम हुवा की इनको गले में तीसरी स्टेज का कैंसर हे

पर डॉक्टर रंजीता पांडे ने इसको ऐसे जी लिया जैसे कुछ बड़ी बात नही दरअसल आप के जीवन मे तब दुखदाई हो  जाता है जब आप इसमें जीने लगते है मस्तिष्क में डर भर लेते है बस मस्तिष्क को अपने वश में करलो तो यह आप का नोकर बन कर आप को जीवन भर सेवा करेगा।शायद डॉक्टर रंजीता पांडे ने अनजाने में ही अपनी मासूमियत व भोलेपन में जीवन की सब से बड़ी लड़ाई जीत ली बिना जाने की लड़ाई कितनी खतनाक थी। आप यकीन नही कर पाएंगे जब आप उनसे मिलेंगे तो आप देखेंगे कि वो आज की दुनिया के हिसाब से नही है एक दम सच का साथ देने वाली स्पष्ट वक्ता ओर बहुत ही निश्चल, निर्मल डॉक्टर रंजीता जी दिल्ली विश्वविद्यालय में सांख्यिकी  बिभाग में प्रोफेसर है। और भी बहुत सारे काम वो अपने पढ़ाने लिखा ने के अलावा भी  करती है ।बहुत कुशल प्रशासक , विश्विद्यालय के प्रशासनिक मामलों में रंजीता का खासा अनुभव है । पर आज जीस  बात की हम चर्चा कर रहे है वो है उनकी गले के कैंसर से जीत का जश्न।
रंजीता जी गले मे छाले बहुत रहने लगे थे  ।डॉक्टर से बात क़र के बिकॉम्प्लेक्स खा लेती थी । ऐसा 6 महीने चल गया पर छाले ठीक नही हुए फिर इनको लगा कि गले मे कुछ पत्थर जैसा लगता है और चूंकि बहुत पढ़ीलिखी है तो यह भी सोच लिया कि यह कैंसर हो सकता है और संत परमानंद अस्पताल में गयीं।वहा डॉक्टर ने ठीक से जवाब नही दिया फिर कैलाश हॉ स्पिटल जो कि नोयडा में है वहाभी बस पैसा गया फीस गयी परेशानी बड़ी। उसके बाद धर्मशीला अस्पताल में भी वही हाल
। इस तरह से वो अस्पतालों के चक्कर काट रही थी पर इसी बीच अपने पढ़ने पढाने का सिलसिला चलता रहा। मजेदार बात जो इनके केस में थी वो यह कि इन्होंने इस विचार को कभी सोचा हि नही की कितनी खरनाक बीमार इनको हो सकती है।ये केंसर का डर नही बना पाई। फिर बाद में इनको परेशानी इतनी बढ़ गयी कि एक दिन इन्होंने खुद ही गले मे हाथ डाल कर देखा और तभी ईनके तालु से बहुत सारा
पानी बाहर निकला तब इनको यकीन हो गया कि हो ना हो यह कैंसर है।और इस तरह से फिर आखिर में ये बी एल कपूर में गयी वहां डॉक्टर ने इनको बायोप्सी के लिए बोला।तब ही ईनको यकीं हो गया की यह कैंसर हे

तब इनको याद आया कि दिल्ली विश्वविद्यालय की ह्यूमन इथिक्स कमिटी में एक डॉक्टर आये थे जो कि राजीव गांधी केंसर हॉस्पिटल से थे।और उनका कार्ड  ढूढ कर जब उनको फ़ोन किया तो वो थे डाक्टर अनुराग मेहता थे । डॉक्टर रंजीता जी कहती है डॉक्टर अनुराग मेहता को जैसे ही फ़ोन लगाया उन्होंने कहा कि किसी भी तरह से आधे घण्टे में आजो ओर जब रंजीता जी थोड़ी ट्राफिक की वजह से थोड़ी लेट होने लगी तो डाक्टर अनुराग मेहता ने फिर भी इन्तज़ार किया और जब यह गयी तो रास्ते मे हर गार्ड को यह मालूम था कि एक लड़की आने वाली है और सब ने इनको तुरन्त डॉक्टर अनुराग मेहता के पास
भेज दिया।इस तरह से आते ही डॉक्टर अनुराग मेहता ने इनको डॉक्टर डबास के पास भेजा और उसी दिन इनके ऑपरेशन की तैयारी क़र दी ।डॉक्टर अनुराग मेहता की बात करते करते ऐसा लगा की  दुनिया मे अभी भी कितनी इंसानियत बाकी है

अभी भी बहुत से लोग है जो आप की के दर्द को समजते है बिना किसी वजह से वो आप की मदद करेंगे। और जो उनके पास है वो सब कुछ आप को दे देंगे।डॉक्टर अनुराग मेहता वास्तव में जीवन देने वाले इमसें है जिनके मन मे लोगो के प्रति बहुत प्रेम व आस्था है आज अगर डॉक्टर रंजिता जी गले के तीसरे स्टेज के कैंसर को मात दे पाई तो सिर्फ डॉक्टर अनुराग मेहता की वजह से । कोई जान पहचान नही फिर भी जीस  अपनेपन से डॉक्टर रंजिता को देखा वो बहुत बड़ी बात है। इंसानियत की मिसाल है।आप को यह मालूम होते हुए भी की आप को गले का कैंसर हो सकता है आप वीभाग जाते है विद्यार्थियों की परीक्षा लेते है इनकी इस आदत ने शायद बीमारी को बहुत नियंत्रण में रखा। इनके पति,  माँ व् पिताजी का बहुत सारा प्यार और सहयोग रहा डॉक्टर रंजिता अपने काम को लेकर बहुत संजीदा रहती है और वो हमेशा अपने स्टूडेंट्स के लिए काम करती है।डॉक्टर रंजिता जी का कहना है कि जब आप मुसिबत को बहुत बड़ा बना देते है तो आप डर जाते है बच्चो को डर नही लगता क्यो की मुसीबतों को आक नही पाते आगे का सोच नही पाते बस आज में जीते है अभी में जीते है अनजाने में रंजिता पांडे भी बिल्कुल ऐसी ही है रंजीता पांडे एक ऐसा नाम है जो बड़ी बड़ी आने वाली तकलीफ को भी इसलिए जीत लेता है कि उसको मॉलूम नही होता है कि तकलीफ कितनी बड़ी है पर यह मालूम होता है कि अभी इस वक्त मुजे क्या करना है। बस अपने आज के काम को देखती है और इस तरह से तीसरी स्टेज के गले के  कैंसर को भी मात देदी ओर  वो भी अनजाने में ही उन सब बातों से पारपा गयीं जो क़ुछ लोगो के लिए मरने का  हो सकती थी।

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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