बच्चे
हमारे देश का भविष्य है पर किसको चिंता हर तुमको तुम्हारे बच्चो को ओर मुजे मेरे बच्चो की चिंता है जो बच्चे अनाथ है । जिनका कोई मा या बॉप मेसे मरगया। जो नानी दादी या माम् चाचा के साथ से जो सड़क पर भीख मांगते है किसको फिक्र है उनकी को सोचता है उनके बारे में हम सब सिर्फ अपने बच्चो के बारे में सोचते है क्या आप को लगता है कि जो बच्चे सड़क पर भीख मांगते है वो क्या क्या नज़ारे देखते होंगे और उसका उनके मन पर क्या प्रभाव पड़ता है और किस तरह से वो उस बात को समजये हे और उसका क्या व्यवहारिक रूप वो समाज को दीखाएँगे क्या हम सब नही जानते कितने बच्चो के साथ ब्लात्कार होता है हम सब जानते है कि किस तरह से नशेड़ी नशा करके आयी एस बी टी के फुट पाथ पर सोते है कभी कुचले जाते है।
खेल
खेलों में सिर्फ उनको बढ़ावा जो सही माने में खेलते है। देश जब आगे बढ़ता है जब चुनाव समिति देखती है कि एक बच्चे बहुत कुछ करने की क्षमता है और उसको किसी का सहयोग नही है। जब देश के बाहर जाने की बात है तब यह न ही कि अच्छा खेलने वाला तो छूट गया और जात का का बेटा चला गया। या कोई अच्छा खिलाड़ी है तो उसको नीचा दिखाया जाय।
महिला
अगर कोई महिला है तो उसके अधिकारों की रक्षा करे ना कि हमे जो पृरूष के होते मिला है उसकी हम उस महिला के खिलाफ इस्तेमाल करे जो छोटे बच्चो के होते या किसी भी मजबूरी में पुरूष की बराबरी नही कर पाती है। जाती धर्म हमको बहुत पीछे छोड़ कर अपने नियम और कानून पर आगे बढ़ना होगा।
ईमानदारी
क्या अपने काम के प्रति ईमानदार हो सकते है। क्या जब कोई नही देख रहा जब कोई कहने वाला नही तब भी क्या हम अपने काम के प्रति ईमानदार हो सकते है।क्या अपने मुल्यों के प्रति ईमानदार हो सकते है। जैसे कि जो मेरे जीवन के मूल्य है वो तो मुजे निभाने ही है।
नफा या नुकसान
मानव स्वभव बहुत ही मतलबी होता है हम को दूसरो के बारे में सोचने की आदत डालनी पड़ेगी एक इच्छाशक्ति के तहत स्वयम को इस काबिल करना पड़ेगा कि हम उसका फायदा उठा पाए।
क्या उस सब चालाकियों को छोड़ दे जो हम को फायदा व दूसरो को नुकसान पंहुचा रही है। क्या समाज को देना सीखे।
उसको उसका हक दे या अपना हिस्सा किसी को दे। क्या अपने हिस्से को किसी को दे या उसका हिस्सा उसको दे।आज भारत देश मे दलित बहुजन व स्वर्ण जातियों में कई पीढ़ियों के फासले है जैसे कि सवर्णों की जहां 6 से 7 वी पीढ़ी पढ़ीलिखी है इनके पास मकान है विदेशों में इनकी ज़मीन है इनका जीवन स्तर बहुत उच्च है इसको रोटी कपड़ा मकान व शिक्षा की चिंता करने की ज़रूरत नही वही दलित बहुजन आज भी बिना मकान बिना धंदा बिना किसी तरह की सहूलियत में जीता है उसके बच्चे जीवन भर संग्रह ही करते रहे जाते है। क्या कभी ऐसा हो कि स्वर्ण अपनी सम्पति जायदाद ओर हिस्से मेसे दलित बहुजन को कोई हिस्सा देदे। ऐसा कभी नही होने वाला।न हुवा ना होगा।