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PARNARI KI WASNA JYO LAHSUN KI BAS KONE BETHE KAHYIYE PARGAT HOYE NIWAS

एक महिला सुबह 4 बजे उठती है। फिर जानवरो को चारा पानी देना फिर उनका गोबर उठाना। इस मे उसको 6 बज जाता है । फिर घर मे बच्चो को चाय दूध बाकी लोगो को नाश्ता देने में 8 से 9 बज जाता है इसीबीच अगर वो गांव में है ओर मोदी जी स्वच्छ भारत योजना  का लाभ ना ले पायी तो जंगल भी जायेगी जिसमे उसके ऊपर किसी भी तरह के अत्यचार की सम्भवनाओ का खतरा टला नही है क्यो की गांव में आज भी जहां जाती प्रथा ओर पृरूष प्रधानता है वहा महिलाओं को सिर्फ पुरूष के काम में सहायक के रूप में ही रखा जाता है उसको प्रोपेटी पैसा व्यापार या ज़मीनी भागिदारी नही है। उसके नाम की दुकान खुल जाएगी राधिका एंटरप्रेन्योरशिप। राधिका को कुछ मालूम नही की कितना बिज़नेस है कितना टर्नओवर है  शेयर की बात ही मत करो। उसके बाद एक दो या तीन जितने भी बच्चे है उनको स्कूल भेजने का काम एक एक जुराब ढूंढ़ने से लेकर टाई ओर टिफ़िन का ढक्कन । इस लोक डाउन में अपने बड़े वीडियो देखें होंगे पृरूष घर मे काम कर रहे है। बर्तन माँज़ रहे है और बहुत दुखी है। और घर मे है बड़े परेशान है । असल मे परेशान वही हुआ इस लोक डाउन में जिसको टाइम मेनेजमेंट नही आता था या जिसको परिस्थितियों के साथ समाधान निकालने का हुनर पता नही था। या वो मजदूर जो अपनी रोज़ी गवा चिके थे। वरना काम करो या ना करो वीडियो ज़रूर पोस्ट करदो। पुरुषो ने हमेशा ही समय से पहले  अपनी बात को  लोगो तक पहुुु दिया। क्यो की वो साधन वाला है जिस दिन घर का काम करेगे उसदिन लोकडाउन के दिन गिनना भूल जाएंगे। खेर समाज विज्ञान के हिसाब से महिलओं के हिस्से काम  जिनकी कोई गिनती नही पैसा नही आधार नही सुरक्षा नही वही है।बच्चे बड़े हुए बच्चे भूल गए आपने हमारे लिए क्या किया। खेर ये सब पर लागू नही पर सच्चाई है । घर, ज़मीन में हिस्सा नही। परिवार में अच्छी बहु बन के रह सब तेरा जिसदिन हमारी बात का उलंघन किया उस दिन दर दर की ठोकरे खाती फिरेगी। भीख माँगेगी। खेर ये भी सब पर लागू नही।पर अधिकर यही सच्चाई है।

खेर हमारे समाज ने अपनी जरूरतों का समाधान अच्छा निकाला वैश्यालय इसके नायाब उद्धरण है अब आप कहेंगे वो तो भारत के बाहर भी है । अरे तो वहां मेल प्रोस्टिट्यूस्ट भी होते है खेर इस बात पर बहस बाद में करेंगे। अब बात है  परनारी की वासना ज्यो लहसुन की बॉस। कोने बेठे खाइए प्रकट होये निवास।। कबीर ने ऐसा क्यो कहा। इसलिए कि यह कभी नही छुपता। हालांकि आज भी हमारे समाज मे बहुत सी महिलाओं को पता है कि उनके पति भी किसी कोने में बेठ कर लहसुन खाते है खा रहे है और ख़या चुके है।पर वो इस बात को इसलिए नज़रंदाज़ करदेती है कि उसको अपने बच्चो की शिक्षा और खुद के लिए कोई और इन्तज़ाम नही है  लहसुन खाने वाला पृरूष भी इस बात को जनता है कि उसके पास लजसुन खाने का इन्तज़ाम है और उसकी पत्नी के पास इसके पैसे नही। बात वही अर्थव्यवस्था की आजाती है कहते है न कि पैसे वाली विधवा आधी विधवा होती है इसी तरह से नॉकरी करने वाली महिलाओं को पति की आमद से कोई ज्यादा सरोकार नही होता है। अठारहवी शताब्दी में इंगलेण्ड में रन वे वाइफ का बड़ा प्रचलन हुवा थोड़ा और जाने इसके बारे में।

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