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प्रोफेसर डेविड जोऊ बेहियांग से इंग्लैंड तक

प्रोफेसर डेविड जोऊ बेहियांग से इंग्लैंड तक

आज 500  रूपये को आप कितना मानते हे बिलकुल भी ज्यादा नहीं।  पर जब आप को यह बात पता चले की सिर्फ 500 रूप ये की वजह से एक मणिपुर के बहुत ही पिछड़े गांव बेहियांग  के  बहुत ही होनहार लड़के ने  जो की अपनी साऱी तकलीफो के बाद भी आगे बढ़ने को उतारू थे  फिर भी एक जगह मात खा गए  की जब उनको टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में एडमिशन (टिस)लेना था तब 500 उनके पास नहीं थे।  और वो फॉर्म नहीं भर पाए और  कभी भी टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में दाखिले का सपना पूरा नहीं कर पा।  परन्तु आज दिल्ली विश्वविद्याल य में इतिहास विभाग में प्रोफेसर हे। उन्होंने ६ से ज्यादा छात्रों को शोध में मार्गदर्शित किया हे और स्वयं ने  इंग्लैंड के क़्वीनविश्विद्यालय  से डॉक्टरेट किया२००४ में  और आज   अपने देश का गौरव बड़ा रहे हे।

जो की आज तो दिल्ली विश्विद्यालय में उनके काम और उनकी सहजता व् सरलता से लोग प्रभावित हे।

आज का लेख प्रोफेसर डेविड जोऊ को समर्पित हे।

प्रोफेसर डेविड बहुत ही छोटी सी जगह में पैदा हुए पिता जी स्कूल में अध्यापक और घर की आमद उतनी नहीं की बच्चो को बहार भेज पढ़ने भेज सके।  माँ बहुत ही महत्वकांगशी अपने बच्चो को आगे की पढ़ाई करने के लिए कितनी भी मेहनत क्योँ  न करनी पडे माँ ने सोच लिया की मेरे बच्चे बहुत आगे पढ़ेंगे और वही महत्वाकांग्शा प्रोफ डेविड को उनकी माँ से विरसात में मिली। बी ए प्रोफ डेविड ने शिलॉन्ग से किया  जैसा की प्रोफ डेविड ने बताया की अपने उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी और आज भी वो यकीं नहीं कर पाते हे की उन्होंने यह मुश्किल सफर तय भी कर लिया हे । शिलॉन्ग की यात्रा आसान नहीं थी उन के घर वालो ने शिलॉन्ग देखा भी नहीं था।

माँ कहती हे चाहे खाना मत खावो पर पढ़ाई करो। पिताजी सरकारी स्कूल में अध्यापक होने के नाते गावों के सबसे अधिक पढ़ेलिखे व्यक्ति रहे हे। फिर भी माँ चाहती थी की उनका बेटा उच्च शिक्षा ले।

उस वक़्त इम्फाल भी बहुत बड़ा शहर लगता था दिल्ली की तो में सोच भी नहीं सकता था। पर माँ ने हमेशा मुझे बहुत हौसला दिया। मेने अपनी एक मणिपुरी शॉल किसी दोस्त को दे कर उस से जो पैसे मिले उनसे जे ए न यू का ऍम ए की परीक्षा दी और फिर जे ए न यू का ऍम ए की परीक्षा पास की।  आज भी जब अपने पुराने दिनों को यादकरता हु तो यकीं नहो होता हे की में यहाँ तक आ गया। मेने अपनी माँ की ताकत से जे ए न यू से पी एच् डी की। मेरी माँ बहुत ही साहसी महिला रही हे और वो हमेशा नर्स बन ना चाहती थी पर वो नहीं बन पायी। इसलिए शायद उनको बहु नर्सिंग की हुयी पसंद आ गयी।

मेरी पत्नी एली ने  बेंगलोर से नर्सिंग का कोर्स किया हे। मेरी पत्नी सारा घर का काम अकेले करती हे हमारे घर में कोई भी काम के लिए नहीं आता मेरी पत्नी सारेघर का काम अकेले करती हे।

मेने 2002 तक  जे ए न यू से ऍम , ऍम फिल, करने के बाद क्वींस  यूनिवर्सिटी बेलफ़ास्ट, इंग्लैंड  से (शोध )
डॉक्टरेट ,छपाई , संस्कृति, भाषा व् पहचान साम्राज्य्वादी मिजोरम में १८९० से १९४७ तक विषय पर किया।

आज भी में अपने प्रदेश के लोगो छात्रों से सीधे जुड़ा हूँ।

शिक्षा मेरे जीवन का उद्देश्य हे और में अपने सभी लोगो से एक ही बात कहूंगा की उच्च शिक्षा जीवन का धेय्य होना चाहिए।
में शोध के माध्यम  से सीधे तोर पर अपने प्रदेश के बच्चो की मदद करता रहता हूँ
एक छोटी बेटी हे तो उसके लिए भी नए नए
तरीके खोजता हूँ कैसे उसको अच्छे से पढ़ा व् समजा सकूँ।

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