हम लड़ेंगे साथी उदास मौसम के खिलाफ ।

हमारा समाज साफ साफ दो भागों में बटा है एक है वो लोग जो रोज़ बहुत दूर जा कर  पानी भरते है क्यों कि हैंडपम्प दूसरो के मोहले में है ।सुबह जंगल मे जाते है अपनी दैनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए खाना बनाना है तो लकड़ी जंगल से आएगी तब ही खाना बनेगा।पड़ने जाने के लिए रोज़ नदी पार करते है। बाढ़ आगयी तो स्कूल बंद।दो वक्त की रोटी नही बीमारी में दवा नही।गर्भवती को चार लोग कमर तक पानी मे किसी तरह खाट पर लजाकर पास के टुटफुटे अस्पताल तक पहुचा पाते है।दाना मांजी पत्नी की लाश  को अस्पताल से घर तक कंधे पर धोता है ।पढने को अच्छा स्कूल नही। प्रयोग शालाये नही। नृत्य करने के लिए कोई न सीखने वाला ना दिशा देने वाला। गाना गाना होतो लड़को की सिटियो से बचो तब तक टेलेंट गया तेल लेने।

ये तो वो चीज़े है जिनके बिना जीना सम्भव नही अगर सुबह का पेट साफ नही हुवा तो बीमार पडगये या पेट खराब है तो जंगल मे ही रहगये। लड़कियों को जब माहवारी शुरू होती है तो जीवन का बहुत बुरा समय आ जाता है ।कपड़ा लेना पड़ता है फिर बार बार बदलना फिर उसको धोना सुखाना अगर बहाव ज्यादा है तो पूरे दिन जंगल मे ही रहेगी। फिर सर्दी के मौसम में बारिश में क्या। जीवन बहुत बुरा है।बार बार कितनी बार आप आएंगे। फिर कई हादसे होते  हीहै । जैसे शिकारी जंगल मे पानी के आस पास  अपना जाल फैलाते थे। यह सोच कर की जानवर पानी पीने तो आएगा ही।महिलाओ को अक्सर इसी समय पकड़ा जाता है ओर प्रताड़ित किया जाता है ।भारत का गांव में जा कर देखो यह रोज़ की बात है। यह प्रकृति की पुकार तो सब को पूरी करनी है । अब आप कब तो पड़ाई करेंगे कब कोई नॉकरी। यह रोज़ मर्रा की ज़रूरत है जो किसी भी हाल में पूरी करनी ही है। एक वो समाज मे जिसके टॉइलट में भी किताब रखी है बाथरूम नहाना धोना कपड़ा खाना सब टेबल पर न वो बाहर पानी लेने जाता है ना खाना ढूंढने।वह बेठ कर कम्प्यूटर बनाता है कुचिपुड़ी नृत्य सीखता है और उन सब बातों को जो कि रोज़ मर्रा की ज़रूरत है किसी एक तबके को लगा देता है वो लोग उसके लिए सब्ज़ी लाते है खाना बनाते है कपड़ा लाते है और उसकी सारी ज़रूरतों को पूरा करते है। एक समाज है अगड़ा या सवर्ण समाज जिसने अपनी सब ज़रूरी बातों का ध्यान आज़ादी के 60 सालो में रख लिया। मकान बना लिए। बिज़निस खड़े कर दिए। पृयोग शालाये बना ली फैक्ट्रियों के अंबार लगा दिए। याबी बेठ कर खाओ न सिर्फ अपना वरन आनेवाली पीढ़ियों काभी घर परिवार काम नॉकरी बिज़नेस सब क़ुछ।

एक समाज है पिछड़ा जिसको दलित  पिछड़ा आदिवासी महिला ओर बच्चे कहे। यह या तो स्वर्णी की ज़रूरतें पूरी करता है या फिर अपनी जरूरतों को पूरी करने की माथा पच्ची में लगा रहता है। इसमी जीवन तो क्या पीढ़ी या निकल गयी। आज भी मुंबई की धारावी एशिया की सब से बड़ी स्लम में दलित मुस्लिम पिछड़ा या गरीब औरते बच्चे है। बस इसके आगे क्या।

अब इसके ऊपर आप सी रिस्तो की खींचा तानी में जो कि जीवन का हिस्सा है एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किसी का मर्डर या बदला या ड्रग्स ज्यस पारिवारिक झगड़ो में बचा कुछ जीवन निकल गया।। अब आप लिखने की बात करे सासु बहु को पढ़ने के एक मिनिट नही देती। पति पत्नी को कोई समय नही देता। कब आप किताब लिखेंगे कब आप अच्छा किर्यान्व्यन करेंगे। कुछ नही बस जीवन निकल गया। दलित आदुवासी महिला मुस्लिम बच्चे आज भी यमुना में बाढ़ आगयी बिहार उड़ीसा एम पी इनसब में हर साल बाढ़ में को बर्बाद होता है । वो स्वर्ण नही जो शहर में अच्छे मकान में रहता है ओर अच्छी सुख सुविधा भोगता है । यहां वो दलित पिछड़ा आदिवासी मुलमान मरता है।अभी भी दलित  पिछड़ा मुस्लिम महिलाएं बाकी समाज से 6 पीढ़ियों के अंतर ले कर चलते है । जिसमे पड़ने का स्तर। मकान बैंक बैलेंस या कहे पूरा जीवन स्तर। एक अगड़े  स्वर्ण समाज का जीवन स्तर बहुत ऊंचा है और दलित आदिवासी पिछड़े व मुस्लिम का जीवन स्तर बहुत नीचा है। फिर क्रियान्वयन कैसे हो ।

Picture of Dr. Anju Gurawa

Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

Leave a Replay

Leave a comment

Sign up for our Newsletter

We don’t spam you and never sell your data to anyone.