मेरा अपना कमरा :वर्जीनिया वुल्फ

आखिर क्या बात है कि 1792 में वर्जीनिया वुल्फ को यह कहना पड़ा कि एक महिला को उसका एक कमरा होना चाहिए। एक महिला के पास पैसे हो एक कमरा है और फिर कलम हो तो वो लिख सकती है। वर्जीनिया वुल्फ उन महिलाओं में से एक रही कि जो महिलाओ के हर मुद्दे की बात करती है । वो शादी नही करना चाहती थी और उनके एक महिला मित्र से वीटा सकविल से बहुत अंतरंग सम्बंध थे। इसको आप आज के समय मे लेसबियन संबंध कह सकते है। उन्हीने शादी अपनी मर्जी से नही की बहुत ज़बर्दति शादी करनी पड़ी। शादी वो करना ही नही चाहती थी परन्तु वह एक समाज का दबाव ओर तरह से कहा जाये तो समाज मे जीना मुश्किल अगर हम शादी नही करे तो।

वर्जीनिया का जीवन एक तरह से बहुत मुसीबतों से भरा था आखिर में उन्होंने आत्महत्या का प्रयास भी किया। उस समय के हिसाब से वर्जिनिया बहुत आगे थी। वर्जीनिया कहती है अगर आप को कोई लेख या कोई भी लिखावटों का अंबार मिले जिसपे की लिखने वाले का नाम नही है तो समझलो की वो महिला है ।

जेन एयर कहती है कि जहां चार्ल्स ड़ीकिन्स  के पास बहुत पैसा था वो एक कामयाब लेखकों में माने जाते थे कर पब्लिशर की लाइन लगी रहती थी वही जेन को जैन ऑस्टिन को ओर बहुत सारी महिला लेखकों को फाके करने पड़ते थे । लोग पढ़ना ही नही चाहते थे।महिलाओ को। जैसे कि आज हम हिजड़ो के बारे में जो लोग एक ही लिंग में विवाह या संबधो की बात करते है तो हम उनसे दूर रहते है।

महिलाओं के पास अपनी खुद की कोई जगह नही होती थी और सब से बड़ी बात आज जो हम देकब्ते है कि प्रसव पीड़ा, बच्चो का  लालन पालन,  किसी के प्रति बहुत भावनात्मक व्यवहार या कमज़ोर शरीर या किसी दायरे में बंधना आज के माहौल में  कोई नकारात्क नही माना जाता है उसी तरह से महिला होना ही एक तरह से प्रताड़ित होने का प्रमाण था। में कहूंगी आज भी हमारे गांव में महिलाओं की यही स्थिती है । महिलाओ में मुद्दे उनकी ज़रूरतें, उनके अधिकार, उनके जीवन को कोई मोल नही जीज़ तर्राह से एक जानवर पालने वाले को इस बात से कोई सरोकार नही की उसकी गाय भैंस बकरी भेड़ या मुर्गी क्या सोचती है उसकी तरह से महिलाओं  का काम है पुरूष के लिए वो करे और बाकी गाय भैंस बकरी भेड़ या मुर्गी बन कर रहले नही तो या तो हलाल कर दी जाएगी या बेच दी जाएगी।

आज हम देखते है कि महिलाए लिखती है पढ़ती है उनके मुद्दे है उसकी आकांक्षाओं का आसमान खुला है यह आप 1792 मे इगलैंड में सोच भी नही सकते थे अगर सोच सकते या कर सकते तो फिर उन सब इल्जामात के लिए तैयार रहे जो आप को मिलने वाले है ।

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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