ऑर्लैंडो

वर्जिनिया वुल्फ जो कि इंग्लैंड की  अंग्रेज़ी साहित्य की जानी महिला चिन्तक विचारक लेखक और समाज सुधारक के साथ एक एसी लेखिका रही है जिन्होंने अपनी लेखनी में 19वी सदी के इंग्लैड में हलचल मचा दी उनकी कुछ खास कृतियाँ है ओर्लेडो, मेरे लिए अपना एक कमरा मिसेस डेलोवी, सिंपल गिफ्ट, मोर इन सब का संबंध महिलओं के अधिकार उनकी खुसी, उनके अपने खुद के लिए समय जगह ओर अधिकार की है अगर आक की माँ है और उनकी कोई सहेली आ गयी जी की माँ ने सहली के साथ मिल के 8 घन्टे बात करनी है तो उस समय मे घर मे पति बच्चे सास ससुर सब बहुत परेशान हो जाएंगे। क्यो की उनकी चाय समस्य पर खाना कोई और ज़रूरत जैसे कि समय पर दवा लेने का समय सब कुछ निकल जायेगा तो क्या हम यह मान ले कि एक महिला जो कि माँ है पत्नी है बहु है बेटी है उसको न अपने लिए कोई समस्य निकालने का हक है ना ही उसको उन जिम्मेदारियो से छुट्टियों का हक है जो वो हर घटे निभाती है जैसे कि सुबह का नाश्ता फिर खाना फिर शाम का खाना फिर हमारे समाज मे कितने लोग है जो इस बात के लिए तुरन्त तैयार है कि अभी का भी हमने खाना भी बना लिया जैसे कि पति उठे रसोई में गए बच्चों को खाना दे दिया परिवार के बाकी सदस्यों ने उस सब काम की पूर्ति कर दी जिसमे की उस महिला को यह नही सोचना पडा की आज का दिन मेरे काम किये बगैर चल जाएगा।

दर असल वर्जीनिया ने हमेशा ही समाज की सीमाओ को नकारा चाहे वह किसी महिला से प्रेम प्रसंग की बात हो या शादी किये बिना साथ रहना। या उस ज़माने के इश्वर पर ही सवाल खड़े कर देना जब कि आप कल्पना भी नही कर सकते थे अगर आपने जीसस के खिलाफ कुछ लिख दिया तो।

ओर्लेडो भी एक अलग कहानी है जिसमे एक ही जीवन मे एक पृरूष महिला बन जाता है और एक ही इंसान जो कि पहले आदमी था अब औरत बन गया तो उसकी सोच समझ और वो समाज को समजने की कोशिश करता है देखता है कि किस तरह से समाज महिलओं ओर पुरुषो के साथ अलग अलाव व्यवहार करता है।

ओरलनेडो बहुत भारी भरकम सवाल खड़े करता है जैसे कि क्या बाहरी शरीर इतना महत्वपूर्ण है। क्या एक महिला दूसरी महिला से प्रेम नही करसकती। समाज को जो बनाया नियम है कि हेट्रोसेक्सुअल समाज ही पूर्ण है यह कितना सही है इस तरह से कई सवाल खड़े होते है वैसे भी वर्जीनिया वुल्फ की लेखनी के साथ साथ उनके निजी जीवन ने लोगो को ज्यादा उत्साहित किया।

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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