हिमालय में बसे नेपाली: रानू कुंवर से बातचीत

रानू कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के शिवाजी कॉलेज में व्याख्याता है| रानू अंग्रेजी विभाग में बहुत मुस्तैदी से अपनी सेवाएं दे रही है| होनहार अपने विषय में मग्न और अपनी जिंदगी की दिशा को सही तरह से हर रोज   हर पल  बुनकर अपने काम और अपनी लगन को कागजों में   बांधने का प्रयास करती रानू बेहद सजग सृजनशील और भविष्य के प्रति आश्वस्त होकर अपने आगे की पढ़ाई को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पूरा करने की  इच्छुक रानू  हिमालय की तराई में रहने वाले नेपाली समाज का गहराई से अध्ययन कर चुकी है\

उस समाज में रहने वाले  नेपाली महिलाओं के मुद्दों को और तकलीफों को इन्होंने अपने कई शोध पत्रों में लिखा है और इसी पर अपनी सोच को आगे बढ़ाते हुए इन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जब अपना पेपर  प्रस्तुत किया| रानू का मानना है कि लड़कियों के जीवन आसान नहीं होता उन्हें हर कदम पर पुरुषों से अधिक और कई गुना अधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है लेकिन अगर आपका लक्ष्य निश्चित है और आपको अपने काम के बारे में जानकारी है कि आप और भी ज्यादा जानने की उत्सुकता रखते हैं तो आपको कोई नहीं रोक सकता| इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण रानू स्वयं ही है जो अपने विद्यार्थियों में और अपने काम में इस बात को लेकर मशहूर होती है कि वह एक मेहनती आने वाली नई परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने वाली लड़की है|

रानू की विषय की विविधता इस बात से भी साबित होती है कि उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से और अंग्रेजी विषय में अपना शोध पत्र  मास्टर तो फिलॉसफी  करने के बाद सीधा  एंथ्रोपोलॉजी में अपना  आगे का रिसर्च करने का  निर्णय लिया और उसमें काफी हद तक सफल भी हुई|

रानू का सपना है कि बॉक्सर यूनिवर्सिटी में जाकर अपनी आगे की पढ़ाई करें  इसके लिए उन्होंने  आपदा के समय में भी विदेश में जाने का निर्णय लिया और यह कानून और आगे बढ़ने की हौसला अफजाई का सबसे बेहतरीन उदाहरण है|

हिमालय की तराई में रहने वाले नेपाली समुदाय के बारे में गहराई से जानकारी करना और उनके सामाजिक राजनैतिक आर्थिक सभी   विषयों को जानने का रानू ने निश्चय किया है रानू का शोध पत्र अमेरिका के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी बेहद सराहा गया और आज वह अपने देश का नाम ऊंचा करते हुए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए रवानगी ले रही है| रानू को ढेर सारी बधाइयां |

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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