सुजाता

1959  9 में बनी फिल्म सुजाता बिमल रॉय की बेहद कामयाब फिल्मों में से एक मानी जाती है इस फिल्म का ज़िक्र यहां सिर्फ इसलिए नहीं किया जा रहा है कि एक कामयाब फ़िल्म है बल्कि इसलिए किया जा रहा है कि यह भारतीय समाज की  दूसरे नंबर की फिल्म है जिसमें जाति व्यवस्था का जिक्र किया गया है| आजाद हुए 70 साल से ज्यादा हो गए हैं लेकिन जाति व्यवस्था ने अपना रूप नहीं खोया|

 जैसे कि अंबेडकर कहते थे इस जाति का आकार रूप और प्रकार उच्च वर्ग को ज्यादा पसंद आता है जो अछूत है दबा कुचला है पिछड़ा है वह इस भव्य से छुटकारा चाहता है क्योंकि सभी के साथ जुड़ा रहने से उसे नीचे होने का एहसास होता है अक्सर आपने सुना होगा लोग जाति को छुपाते हैं यह तो सुना होगा लेकिन यह नहीं सुना होगा कि क्यों छुपाते हैं जैसे ही आप अपनी जात बताएंगे उसके साथ जुड़ी गंदगी सामने वाले के दिमाग में तरोताजा हो जाती है और वह आपको सम्मान नहीं दे पाता जिसकी आप हकदार है इसीलिए लोग जाति छुपाते हैं|

 वर्ग की जाति  के साथ अच्छी बातें झूठी है और निम्न वर्ग की जाति के साथ गंदी बातें|

अति इसीलिए  निम्न वर्ग के लोग जाति छुपाते हैं और उच्च वर्ग के लोग जाति का बखान करते हैं आप देखिएगा कहीं भी अगर 10 लोग खड़े हैं बराबरी के जिन की अर्थव्यवस्था रहन-सहन खान-पान में कोई फर्क नहीं है लेकिन भारत में लोग अपनी जाति का जिक्र जरूर करेंगे खासतौर पर बनिया ब्राह्मण राजपूत और जो अपने आपको थोड़ा ऊंचा समझते हैं|

 सुजाता जाति व्यवस्था को उस आधार पर तोड़ती है जो कि आज हम 70 साल तक भी नहीं तोड़ पाए आज की जाति व्यवस्था में खान पान रहन सहन सब मिल जाएगा लेकिन लोग शादी के बंधन में अभी भी नहीं बनते और अगर ऐसी शादियां हो गई तो वह समाज उस को कामयाब नहीं होने देता|

 बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था  जब तक रोटी बेटी का संबंध नहीं होता तब तक जाति व्यवस्था नहीं जाएगी| यह लड़ाई उसे ऊपर उठी है और अब जो दबा कुचला है दलित है आदिवासी है मुसलमान है या अन्य तरह से जिसको कि समाज से निष्कासित किया हुआ है जैसे कि एलजीबीटी फिर ग्रुप ना सिर्फ अपना हाथ जाता है बल्कि उसके साथ हुए बरसों से अन्याय का बदला भी चाहता है इसीलिए जाति को सिर्फ रिजर्वेशन तक जोड़ देना अब लोगों को पसंद नहीं है हमारे देश में अगर सवर्णों की छह से सात पीढ़ी पूर्ण तरह से शिक्षित आर्थिक रूप से संभल और राजनीतिक रूप से प्रभावी है तो वही दलित आदिवासी पिछड़ा मुसलमान समाज की पहली पीढ़ी की शुरुआत भी नहीं हुई है आप कहीं भी जा कर देखिए दिल्ली में जो पोस्ट कॉलोनी है जो अच्छे घर है अच्छे मकान है वहां कितना मुस्लिम दलित पिछड़ा आदिवासी आपको उसी स्तर पर रहते हुए मिल जाएगा कितने लोग हैं हमारे समाज में दलित पिछड़े आदिवासी मुसलमान जिनके पास बड़े-बड़े व्यापार हैं या मिले हैं आज भी इस गरीब तबके का काम उच्च वर्ग की अर्थव्यवस्था में एक मजदूर की तरह है सुजाता इन सब सवालों पर बहुत बड़ा निशान छोड़ दी है सुजाता फिल्म जरूर देखें यह फिल्म क्लास रूम में पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए|

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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