भारतीय किसान महिलाएं

किसान किसान जब हम नाम लेते हैं तो जेहन में सिर्फ एक पुरुष की छवि आ जाती है और यह जानकर किसी को भी आश्चर्य नहीं होगा कि हमारी फसल का 77% हमारे समाज की गांव की महिलाएं पैदा करती है वह महिला जो सुबह 4:00 बजे उठती है जानवरों को चारा देगी गोबर साफ करेगी उसके बाद वह अपने ही परिवार के लोगों को चाय बना कर देती है फिर बच्चों के लिए खाना तैयार करती है बच्चों को स्कूल भेजकर और दिन भर के लिए खाना तैयार करके फिर वह खेत पर चली जाती है|

 खेत पर जाने के बाद भी वह आराम नहीं करती और अपने काम में लग जाती है जो भी काम होता है खेत खोदने का पानी पिलाने का या पौधे निकालने का रखवाली का सारा काम करती है दिन भर यहां तक कि खाना खाने जब भी बैठे तो खाना भी निकाल कर पति को खुद ही देती है फिर उसके बाद वह अपने पति के साथ ही शाम को घर आएगी घर आने के बाद उसका काम खत्म नहीं होता फिर एक नया काम शुरू होता है घर आने के बाद उसको फिर चोला चौकी करना है खाना बनाना है बच्चों को देखना है घर की सफाई कपड़ा यह सारा काम उस को विश करना है एक महिला और एक पुरुष से 8 घंटे ज्यादा काम करती है सुबह का 4 घंटा और शाम का 4 घंटा और बाकी का काम जो भी आप 6 या 8 घंटा मान ले तो इसका मतलब महिलाएं कई गुना ज्यादा काम परिवार में करती है उतना कि पुरुष नहीं करते

 फिर हम इन महिलाओं को गिनती करने से कैसे चूक जाते हैं या इनकी मुद्दों को उठाने से या इनकी परेशानियों को समझने से क्यों फेल हो जाती है क्यों मनरेगा में सरकार की तरफ से तय की हुई मजदूरी के बावजूद महिला को कम और पुरुष को ज्यादा मजदूरी मिलती है काम की मजदूरी काम के हिसाब से मिलती है या पुरुष या महिला होने के हिसाब से हमारे समाज का ध्यान ढांचा इतना अधिक अव्यवस्थित और गैर बराबरी के आधार पर बना है कि काम के आधार पर ना होकर लिंग के आधार पर पैसा दिया जाता है सम्मान दिया जाता है इज्जत दी जाती है और अक्सर मिलते हैं

 आप अगर पुरुष है तो आपके लिए समान अवसर हैं आपके लिए उपलब्धि है आपके लिए आगे बढ़ने की अवसर है अगर आप महिला हैं तो आपके लिए सारे रास्ते बंद और इसके बाद समाज में इस तरह की कोई बात भी नहीं होती है कि हम महिलाओं के काम को देने उनको उनके अधिकार दिए सुरक्षा दे कैसे की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक

 जैसा कि फ्लेबिया इग्निस कहती है सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है संपत्ति का अधिकार हर महिला को उसकी संपत्ति का अधिकार होना चाहिए और जैसा कि वर्जीनिया वुल्फ कहती है कि मेरा अपना एक कमरा जिसमें मैं पढ़ सकूं बैठ सकूं लिख सकूं और वहां मुझे कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं हूं मेरी अपनी एक आम आदमी हो जिससे मुझे किसी के ऊपर निर्भर होने की जरूरत ना पड़े

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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