किसानों में खुले बाजार का खौफ |

1932 में बाबासाहेब अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच टकराव की स्थिति आ गई थी तो गांधी ने कहा था कि 1 दिन ऐसा आएगा जब सवाल अपनी जायदाद में हिस्सा और अपने संसाधनों में अपने आप हिस्सा गरीबों को दे देंगे अछूतों मुसलमानों दलितों पिछड़ों और महिलाओं को अपनी हिस्सेदारी दे देंगे इसी लिए रिजर्वेशन को 10 साल के लिए रखा जाए और लोगों का हृदय परिवर्तन होगा और लोग अपने आप अपने हिस्सेदारी दे देंगे|

 सद्गुरु का एक वीडियो है जो यूट्यूब पर  आपको मिल जाएगा उस में मार्क्सवाद की बात कहते हैं जिसमें कि अमीर अपने संसाधनों को गरीब को देने की बात करता है वह कहते हैं कि एक आदमी अपने बगल में 2 मुर्गियां लेकर जा रहा था और उसे किसी ने पूछा कि कॉमरेड अगर आपके पास दो बंगले हैं तो क्या एक बंगला आप गरीब को दे देंगे हां बिल्कुल दे दूंगा मैं पार्टी का मेंबर हूं और मैं दे दूंगा अगर आपके पास 2 करोड रुपए है तो आप 10000000 गरीब को दे देंगे बोले हां बिल्कुल दे दूंगा क्योंकि मैं मार्क्सवादी हूं और मैं दे दूंगा उसके बाद उसे पूछा गया कि आपके पास दो  2 मुर्गियां है क्या एक आप गरीब आदमी को दे देंगे उसमें क्या बात करते हो यही सब तो है मेरे पास यह कैसे दे दूंगा तो कहने का मतलब यह था कि लोग ही देना पसंद करेंगे जो उनके पास नहीं है लेकिन जो है उसमें से कोई भी बंटवारा नहीं चाहता यही कारण है कि आजादी के 70 साल बाद भी धारावी में इतनी बड़ी जनसंख्या गरीबी में रहती है महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं जिनके पास एक मकान है उनके पास 10 बनते हैं जिसका बिजनेस बड़ा है वह और बड़ा बनता है और गरीब वही  वही का वही |

जो हृदय परिवर्तन जैसी एक काल्पनिक बात को किसी समाज में लागू होते नहीं देखा गया और यही कारण है कि आज का किसान खुले बाजार से आढ़तियों से और उन बड़े बड़े व्यापारिक घरानों से डरता है जब उसके भरे हुए ट्रक उसके सामने जाएंगे और व्यापार यह कहकर मना कर देगा कि इसकी क्वालिटी ठीक नहीं है अब जो किसान हजारों रुपए लगाकर परिश्रम लगाकर उस सामान को भर कर लाएगा वह कहां लेकर फिर आएगा और खेती का सामान एक समय के साथ खत्म हो जाता है सब्जियां ज्यादा दिन नहीं चलती और यह बात व्यापारी जानता है इसीलिए वह इस बात का फायदा उठाकर किसान का शोषण करेगा|

  काल्पनिक और सपनों की दुनिया की बात करते हैं वह संभव नहीं है अगर बातों को और नियमों को लोगों की इच्छाओं पर जोड़ दिया जाए तो  ट्रैफिक नियंत्रण की जरूरत नहीं है|

 कानून की बोली थी और नियम कानूनों की और किन्हीं धाराओं की जरूरत नहीं है आप लोगों के मन पर बात छोड़ दीजिए जब उनका मन होगा तो वह मान लेंगे नहीं तो यह देश जाए भाड़ में

उन किसानों का दर्द जो साल भर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई को कौड़ियों के दाम बेचता है उसके बच्चे एक मोबाइल तक नहीं ले सकते जिससे कि वह अपनी क्लास से ऑनलाइन कर सकें और आढ़तियों के और खुले बाजार के चंगुल में किसान को फसाना बेहद खास ज्यादा और अमानवीय है|

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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