भारतीय समाज में जाति का बहुत अधिक महत्व है| जो उच्च वर्ग से आते हैं वह इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि बातों बातों में तुरंत बता दें कि हम ब्राह्मण हैं बढ़िया है और हम राजपूत हैं हम कायस्थ हैं दलित बेचारा सामाजिक तौर पर हीन महसूस करता है |इसलिए वह बता ही नहीं पाता| जाति बताने का काम सवर्णों का है और जाति छुपाने का काम दलितों का है| अब इसे भी समझ में आता है कि जाति का टोकरा टोकरा टोकरा कौन सर पर लेकर घूमता है| दलित जाति व्यवस्था को खत्म करने मैं लगा रहा |जितने भी हमारे सामाजिक क्रांतिकारी हुए हैं उन्होंने जाति का विरोध किया |जाति सवर्णों के द्वारा थोपा गया वांछनीय व्यवहार है जो बहुजन की सामाजिक प्रतिष्ठा को घटाता है आप नए मोहल्ले में शिफ्ट हुए हो पड़ोसियों को जानने की उत्सुकता रहती है जाति क्या है ?ब्राह्मण है? बनिया है ?राजपूत है ?कायस्थ है? ऐसी एसटी है ?पिछड़ा है ?अति पिछड़ा है? और यह सब उसी दिन तय हो जाना चाहिए जिस दिन आपने मोहल्ले में प्रवेश किया फिर उसके बाद आपको दिए गए मान सम्मान की सीमा रेखा तय हो जाती है पड़ोसी आपको किस तरह से रखेंगे अगर आप उच्च वर्ग के हैं तो अच्छा बराबरी का व्यवहार मिल जाएगा अगर आप शेड्यूल कास्ट है तो फिर नीचे रखा जाएगा शारदा मिल भाव नहीं रखा जाएगा खानपान का आदान-प्रदान नहीं होगा अगर आप अति पिछड़ा है या पिछड़ा है तो थोड़ा बहुत चल जाएगा|
इस बीच में आपके घर में कितनी इनकम है आपका माली हालत कैसी है ?आपके परिवार में कितने पढ़े लिखे लोग हैं? यह बहुत मायने नहीं रखता है हां अगर पड़ोसियों को जरूरत है कि डॉक्टर है आपकी सेवाओं की आवश्यकता है तो थोड़ा सामान मिल जाएगा फिर अगर जज है वकील है या आप कुछ और ऐसा कर सकते हैं जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तो उस तरह से ऑन एंड ऑफ आपको सम्मान मिलता रहेगा लेकिन कुल मिलाकर एक सामाजिक तौर पर आपको एक सलूशन का सामना करना पड़ेगा और वह आपको महसूस भी होगा आप पड़ोसी हैं |आप समझते हैं और आप वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे पड़ोसी चाहते हैं अगर आप मुस्लिम है तो आपको समाज में और सोसाइटी में मोहल्ले में वह व्यवहार नहीं मिलेगा जो कि एक ही जाति के लोगों के बीच में होता है|
भारतीय किसान एक क्लास है जो अर्थव्यवस्था और काम के आधार पर तय की जाती है इसमें ज्यादातर गरीब पिछड़ा अति पिछड़ा दलित महादलित महिलाएं और आर्थिक रुप से कमजोर लोग ही शामिल हैं सरकार क्यों उनको सुनने पर मजबूर हो जाती है क्योंकि इनकी संख्या बहुत अधिक है और इनके काम रोकने से बाकी के लोग भूखे मरने की नौबत आ जाती है |
इसीलिए सरकार को जानबूझकर के सुनना पड़ता है और अभी तक के किसान आंदोलनों का यह भी रहा है कि उन्होंने अपनी लड़ाई को हर मोर्चे पर दिखा दिया लेकिन फिर भी किसानों के बारे में ऐसे कोई निर्णय नहीं लिए जाते जिससे कि उनकी माली हालत ठीक हो सामाजिक तब का ऊपर उठे और उनकी हमेशा के लिए इस तरह का कोई बंदोबस्त हो जाएगी उनको इस तरह के बार बार आंदोलन नहीं करने पड़े अबकी सरकार किस तरह से इस चीज को मैनेज कर लेती है कि वह बहुत कुछ नहीं दिए बगैर भी अपनी सरकार बना लेती है वोट ले लेती है |
शायद यही कारण है कि आप आइए जंतर मंतर से उखाड़ दिए गए तो दिल्ली के सारे बॉर्डर पर अपना मजमा लगा लीजिए सरकार परेशान तो होती है लेकिन कुछ दम है कि परेशानी समझ कर उसका समाधान निकालने के प्रयास में जुट जाती है क्योंकि भारत का किसान गरीब है उसके पास इतनी आमद नहीं होती संसाधन नहीं होते इसीलिए वह भी थोड़े समय में अपनी स्थिति से समझौता करके फिर काम पर लग जाता है लेकिन यह कहीं भी हमारे समाज देश और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी स्थिति नहीं है कि जो इस देश को जीवन देता है अन्य देता है उसका इतना बुरा हाल है|