अधिकारों से पहले क्यो ना कर्तव्यों की बात करे। हम कितने अधिकार मांगते है कोई आज तक एक रैली नही देखी जो अपने कर्तव्य निभाने की बात करते है। सब कुछ अधिकार कर्तव्य किसी का नही उस देश की बर्बादी होने है ।
स्वतंत्रता सोच की
जब देश के लोगो को लगे को वो स्वतंत्रता पूर्वक सोच सकते है । उनकी भाषा विचारों और अभिव्यक्ति पर बमदिश नही है तो देश आजाद है।
स्वतंत्रता चुनने की
जब हम किसी को भी किसी भी रूप में चुनाव की अभिव्यक्ति करते है चाहे वो व्यापार ही जीवन साथी ही राज्य हो शिक्षा हो या धर्म।
स्वतंत्रता काम को करने की।
जो कोई काम आप करे उसमे आप को बंधन न हो जात का धर्म का राज्य का भाषा का लिंग का तब हम स्वतंत्र है।
स्वतंत्रता पूरे समाज की।
कोई भी समाज जब वैज्ञानिक हो समाज मे सभी का बराबर का प्रतिनिधित्व हो । और काम का परिणाम भी मिलता है तब देश आगे बढ़ता है।
जितने हम विभिन्न है उतने हम आगे है। जब देश को किसी सीमा आ में न बांधा ज्याए कोई बंदिश ना लगायी जाए तब देश आगे बढ़ता है।
परिवर्तन को कितना सहज स्विकार करते है।
समय के साथ परिवर्तन होते है और उनकी स्विकारता कितनी माने रखती है समाज में जैसे कि आज हम उस समाज की कल्पना करते है जिसमे कोई लिंग के आधार पर भेद नही अगर किसी का लिंग स्पष्ट नही तो भी हम को गुरेज नही तब तो बात बनती है या छोटे शहरों में कितना हम अंतरजातीय विवाह या एक ही लिंग विवाह को मान्यता देते है।
क्या बच्चे सुरक्षित है।
दुनिया की सब से बड़ी जनसंख्या वाला देश कितने बच्चेअनाथ कितने बेचारे कितने पीडित कितने शिक्षा से या पोषण से वंचित।
अमीर गरीब का गांव शहर का जात पांत धर्म देश का कितना भेद मानते है
कानून को कितना मानते है । कर्तव्य को क्या जानते भी है?
संविधान की कितनी पालना करते है कानून को कितना मानते है इस सब से तयः होता है हम निजी जीवन मे कितने सच्चे ईमानदार है रिश्तों में कितनी धोखे बाज़ी करते है ।
जब निजी जीवन मे ईमानदारी नही देश की तरक्की नही।