Raag Darbari: Doglye Avm Bhrasth Bharatiya Samaj Ka Aayina

आज का लेख समर्पितं है श्रील लाल शुक्ल को जिनकी रचना राग दरबारी बहुत ही सटीक चित्रण करती है भारतीय समाज के दोगले पन व् भ्रष्ट समाज का। यह लेखनी इतनी तीक्ष्ण है की इसको पढने के बाद आप को लगेगा की ये आप के जीवन का एक अलग अनुभव था। जिस समाज में आप रहते वो इतना दोगला हे। 1967 में लिखा गया ये उपन्यास भारतीय समाज के चरित्रों को इतना जीवंत करता है जिसका कोई मेल नही। कहानी शिवपालगंज (एक काल्पनिक गांव पर सच्चाई के बहुत करीब ) रंगनाथंन की नज़र से कही गयी है और रंगनाथन शहर का पढ़ा लिखा नव युवक है जो कि कुछ स्वास्थ्य लाभ के लिए गांव में आता है और फिर गांव की राजनीतिक समजदारी देखता है । ये समजदारी बहुत व्यक्तिगत है बहुत ही जाती वादी महिला विरोधी पूरी तरह से एक जाति विशेष, उच्च वर्ग को समर्पित । निम्न वर्ग वही हांसिये पर। एक समाज विशेष को समर्पितं उसके लाभ को समर्पित। अब गांव में एक वैध है जो जात से ब्राह्मण हे सम्पन हे बहुत चालक हे सरकार के पैसे को ठिकाने लगाना जानता ह। स्कूल की कमिटी के प्रमुख है जो कि कोऑपरेटिव समिति के भी प्रमुख है और जो स्वयं वैध है और उच्च कुलीन ब्राह्मण है। जिनके दो बेटे है एक पहलवानी करता है बद्री पहलवान दूसरा राजनीति में रूपन बाबू। रुप्पन कई वर्षों से 10 में ही है परन्तु कॉलेज की राजनीती में प्रिंसीपल भी उनके जूते के नीचे है क्यो कीप्रिंसिपल वैध जी की वजह से बना हे इसलिए सदैव जूती के नीचे रहते है।

अब एक मजेदार बात है कि गांव की सामाजिक वितरण व्यस्तता जिसमे की सरकार से पैसा आता है जो कि पंचायत में लगता है और जनता के काम मे लगना है उसका मुख्य शनीचर बना दिया जाता है जो कि वैध का नौकर है यानी कि पूरे सरकारी तंत्र का पैसा वैध जी अपने कब्जे में रखते है। ये वही पैसा है जो आप के ओर हमारे दादा पड़ दादा टैक्स में देते आये थे जो कि हर साल वैध जी के कब्जे में पंचयात के रास्ते पहुच जाया करता था। इसके बाद महत्वपूर्ण है पोलिटिक्स जिसमे की सबसे अधिक ताकत का जलवा है राजनीति से मिलता है अगर राजनिती में आप की पहुच है या आप स्वयं राज नीतिज्ञ है तो आप जानते है कि क्यो राजनीति इतनी महवत्पूर्ण है इस परिवेश में आप कितने घंटे पढ़ते है या आप को अपने विषय का पूरा ज्ञान है या गणित सामाजिक विज्ञान व साहित्य में सब आप ने सब पढ़ लिया ये मायने नही रखता क्योँ कि सारी नियुक्ति सारा तंत्र उन लोगो के हाथ मे है जो सिर्फ एक नेटवर्किंग के रूप में काम करते है जैसे कि सब की जात समान होनी चाहिए सब की विचारधारा समान हो सब के लाभ का हित साधते हो और सब एक ही दिशा में काम करे।

अब इसमें अगल जाति, अलग विचार, अलग समाज अलग धर्म,अलग बात का कोई मायने नही रखता । गांव के किसी यक्ति में ये हिम्मत नही की वो पूछे कि पंचायत का पैसा कहा गया ? या ये सड़क इतने बरसो से क्यो नही बनी ? या ये अस्पताल में इतने मरीज़ क्यो मर गए?वहाँ गाओ में सब का भविष्य निश्चिय है सब के दुर्दशा निश्चित है। जो विरोध करेगा। जो लाइन से हट जाएगा वो वही खत्म कर दिया जायेगा गाओ की सज़ा का प्रावधान इतना निर्मम है कि किसी की हिमाकत नही होती उसके खिलाफ जाने की तब ही अंबेडकर ने अछुतो को कहा कि शहर की तरफ चलो ओर जो दलित की शहर तरफ आया उसका उद्दार हुआ उसकी शिक्षा हुई और उसकी उन्नति हुई। क्यो की शहर की संरचना इतनी जटिल नही होती है। रागदरबारी गांव की वो तस्वीरे खिंचता है जो इस बात का उत्तर देती है कि 30 साल बाद भी गाओ में सड़कों का निर्मान नही है स्कूल की कोई उन्नति नही हुई अस्पताल आज भी 50 साल पुराने औज़ारों से काम कर रहा है । फिर पचासों सालो में हर साल विकास के नाम पर आनेवाला पैसा गया कहाँ? टैक्सपेयर के पैसे का क्या हुआ? क्यो की सरकार ने तो कभी किसी का टैक्स नही छोड़ा। वो पैसा गया पंडित जी के घर मे उनके बच्चो की पड़ाई में उनकी घर की नींव मजबूत करनें में आप आसानी से इस बात को समज सकते है कि पिछ्ले 70 सालो में विदेश में जाने वाले वहाँ नोकरी करने वाले ओर वहाँ जा कर बसने वाले लोगो को आप देखेंगे तो आप पाएंगे कि वो भारत के उच्च वर्ण से आते है जो नोकरी में पैसे में ज़मीन में ज्ञान में व्यापर में सब मे आगे रहे है। एक वर्ग विशेष एक जाति विशेष एक धर्म विशेष इन ही लोगो का दब दबा रहा है और इसकी नींव डलती है इस शिवपाल में जहाँ वैध जी कोओपरेटिव सोसाइटी के प्रमुख है यानी कि खाने के भंडार होंगे वैध जी के घर में वो भी भारत सरकार उनकी सारी जरूरतो को पूरा करेगी। पंचायत का मुखिया उनका नोकर है यानी कि गांव की राजनीति का मुख्यमंत्री ओर कॉलेज प्रबंद के मुखिया यानी कि शिक्षा भी उनकी मुट्ठी में ओर वैसे भी भारतीय शिक्षा तो गांव की कुतिया है जिसको जब जो चाहें लात मार दे। महिलाओं की स्थिति के बारे में क्या कहे उसके चरित्र की बखिया उधेड़ने का हक मानो सब को जन्म के साथ ही मिल गया है।

डॉ अंजू गुरावा
अस्सिस्टेट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
दिल्ली विश्विद्यालय

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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(1) Comment

  1. हंसराज

    डा अंजू मैम आपके लिखे हुए लेख मै पढ़ता रहता हूँ। आपके लेख अधिकतर वर्तमान की घटनाओं पर आधारित होते है। जो घटनाएं हो रही है, वास्तव मे आपके लेख में उनके शानदार सुझाव दिए होते हैं। आपके लेखों से मुझे भी बहुत कुछ मार्गदर्शन मिल रहा है। आपके लेख समाज के उत्थान के साथ- साथ राष्ट्र निर्माण मे सहयोग दे रहें है। ऐसे विद्यार्थियो को भी आपके लेखों से लाभ मिल रहा है, जिनको घर पर मार्ग दर्शन नहीं मिल पाता। मुझे आपके लेखों से जो मार्ग दर्शन मिल रहा है मै इसके लिए आपका आभारी हूँ। धन्यवाद मैम। हंसराज असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय।

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