19वीं शताब्दी में भारतीय वअंग्रेज महिलाएं |

19वीं शताब्दी में इंग्लैंड में महिलाओं को एक  परी परी कहकरसपनों की दुनिया का झांसा दिया जाता था |जिसमें कि बचपन से महिलाओं को सिखाया जाता था कि उनको बड़े होकर एक अच्छे से घर में शादी कर दी जाएगी और उसी में सब कुछ ऐसा होगा एक अच्छा सा अच्छा सा राजकुमार और सपनों जैसी दुनिया लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि सपनों की दुनिया को बनाए रखने में सिर्फ उसी परी का सहयोग ही होगा  और उस परी को दिन-रात उसे सपनों की दुनिया को बनाए रखने के लिए काम करना होगा जैसे कि सुबह जल्दी उठो बच्चों को खाना दो पति की सेवा करो घर को साफ सफाई से रखो और फिर आपकी पूरी अभी से 40 साल की शादीशुदा जिंदगी में आपको उम्र के कम से कम 80% भाग में गर्भवती होने का सौभाग्य मिलता रहेगा और बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी होती रहेगी 19वीं शताब्दी में 18 से 19 बच्चे होना इतनी अधिक आम बात थी जितना कि आज हम दो बच्चों की बात करते हैं19वीं शताब्दी में एक आम बात और  थी और वह यह कि 18 से 19 बच्चों में जिंदा रहेंगे यह भी एक आम बात थी 22 साल की शादी में 20 साल उनकी पत्नी गर्भवती थी उनके घर जाते थे तो उनकी पत्नी हमेशा गर्भवती थी और आखिर में कई अमरीकी महिला के साथ रहने के लिए को तलाक दे दिया और उसके घरवालों से और कैथरीन से यह मानसिक रूप से अपने बच्चों और परिवार के साथ रहने के लायक नहीं है और वही चार्ल्स डिकेंस 19वीं शताब्दी में पूंजीवाद के खिलाफ लिखते हैं और उन सब बातों को लिखते हैं जो कि एक गरीब के पक्ष में है परंतु अपने निजी जीवन में वही चार्ल्स डिकेंस अपनी पत्नी को कितना प्रताड़ित करते हैं इस बात का कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता

यह सुनकर और सोच कर बड़ा अजीब लगता है कि जिस समाज में महिला को परी या एंजेल का दर्जा दिया गया इतना ज्यादा काम करवाया गया 24 घंटे यह महिला अपने घर को सजाने संवारने बच्चों को पढ़ा कर  पति की सेवा करने में लगी रहती है और और उसको अगर घर से अलग हो जाए या उसका पति मर जाए उसका तलाक हो जाए तो उस महिला के पास ना तो मकान होता है ना उसके पास कोई होती है ना ही कोई सामाजिक सहारा होता है इसीलिए शायदवर्जिन बार-बार अपने लिए एक कमरा होने की बात कहती है और एक लगातार आम अदमी जो कि महिला के पास होनी चाहिए एक महिला का अपना कमरा और एक लगातार आम अदमी यह वर्जीनिया बुर्का बार फ्लेबिया इग्निस   को अगर आप पढ़े और अपनी और कानून में लिखती है शताब्दी में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि शादी जैसी संस्था को बनाए रखने के लिए महिलाओं को संपत्ति से वंचित करना जरूरी था महिलाओं के पास संपत्ति होती और वह अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व बना पाती तो शादी जैसी संस्था को बनाए रखना आसान नहीं था और इसी कारण तब से लेकर आज तक ही परंपरा चली आ रही है कि महिलाओं को संपत्ति में अधिकार नहीं होता है हालांकि भारत में कानूनी तौर पर इस बात की पुष्टि होती है कि महिलाओं को पिता और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है लेकिन जमीनी स्तर पर आप देखेंगे कि ज्यादातर लड़कियां शादी के बाद अपने भाइयों के पक्ष में अपनी सारी जायदाद जमीन और अपने हिस्से की है और यह बड़ा आराम से बहुत साधारण तरीके से हो जाता है अगर इस महिला का अपने पति से झगड़ा हो जाए यह वह अपने पति का घर छोड़ दे तो ना उसके पास अपने पिता की संपत्ति में कोई हक बनता है और ना ही पति उसको कुछ देने को तैयार होता है इस तरह से इन महिलाओं के साथ समाज ने बहुत तरीके से और चालाकी से इस कदर महिला को निर्भर बनाया है कि आखिर में अंत में वह फिर समाज उसको उसी तरफ जाने के लिए बाध्य करता है जिसमें कि कहीं न कहीं किसी न किसी पुरुष का सहारा उसको मिलना जरूरी है आज भारत में कुछ मेट्रोपोलिटन शहरों में इस बात को भी देखा गया है कि महिलाएं स्वतंत्र रूप से एक के रूप में और अपने काम में स्वतंत्र रूप से आर्थिक स्वतंत्रता के आधार पर अपने आप को अपने आप को संभाल लेती है लेकिन फिर भी उस महिला को बार बार बार बार यह एहसास दिलाया जाता है कि आपको कहीं ना कहीं किसी न किसी पुरुष का सहारा  चाहिए| बिना पुरुष के आपका जिंदा रहना इससे समाज में संभव नहीं है समाज आपको बार-बार इस बात का एहसास कराएगा|

19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति इंग्लैंड में अगर हम देखे तो उसको एक ऐसी एंजल के रूप में प्रस्तुत किया गया है  वह बहुत नाजुक थी और शर्मीली थी और अपने पति का इंतजार करती हुई और सारी जिम्मेदारियां निभाते हुए बिना इस एहसास को समझें कि यह घर और यह सारी जिम्मेदारियां उसके चलाने से चल रही है इसमें पति का कोई योगदान नहीं है और आखिर में पूरे जीवन में समर्पण की भावना से जीते हुए वह कभी उस समाज से लड़ाई नहीं कभी अपने अधिकार को मांग पाए हमारे भारत में भी एक केस बढ़ाने वाला है सायरा बानो एक मुस्लिम महिला थी और उम्र के साथ में दौड़ में उसके पति ने उससे कई गुना कम उम्र की लड़की से संबंध बना लिए और सायरा बानो को तलाक तलाक तलाक तीन तलाक की जो खुलती है उसका फायदा उठाते हुए उसने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और सायरा बानो की प्रति सुप्रीम कोर्ट के लॉयर थे अब इस महिला के पास जो कि ना उसके पास कोई आर्थिक सुरक्षा थी उसके पास बचे थे और ना ही उसको कोई कानून का जानकारी थी उस महिला ने अपने पति के खिलाफ जो कि सुप्रीम कोर्ट में लाया था के खिलाफ कानून की लड़ाई लड़ी और आखिर में जीत और उसकी एक महीना के आधार पर उसका पैसा बांधा गया जिसमें कि उसके पति को पैसा देना कानूनी कानूनी जरूरी था सरकार ने इस फैसले को उलट करते हुए करते हुए सायरा बानो को वही उसी जगह लाकर खड़ा कर दिया जहां उसकी लड़ाई की शुरुआत हुई थी और आखिर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जो जो केस हो चुकी थी आखिर में सरकार के इस निर्णय के आधार पर सायरा बानो ने उठा लिया हमारे समाज में महिलाओं को इस तरह से हमारे समाज में महिलाओं को हमेशा से निर्भर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है सामाजिक तौर पर इस तरह का ढांचा तैयार किया जाता है कि महिला निर्भर रहे आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से निर्भर है सामाजिक तौर पर अक्सर ये एहसास दिलाया जाता है कि तू निर्भर हो तुम्हारा किसी के बिना काम नहीं चलता और यही कारण है कि महिलाएं अपना जो एक समय बहुत अधिक क्रियान्वयन में लगा सकती है समाज में कुछ अच्छा कर सकती है वह महिलाएं अपने झगड़े समझाते समझाते जीवन का आखिरी दम तोड़ने लगती है और यह समाज की सोची समझी चाल है भारत में भी आपने अक्सर देखा होगा गांव में किसी को चुड़ैल के दिया किसी को डायन कह दिया और उस महिला का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है और पीछे एक बहुत बड़ी राजनीति और पुरुष की सोची है जो पुरुष महिलाओं को जो कि विधवा है या अपने पति से अलग रह रही है जिसके घर में कोई पुरुष की रक्षा करने वाला नहीं है महिलाओं को टारगेट करने के लिए इस तरह की कुरीतियों को प्रोत्साहित करते हैं और जिस में अकेली रहने वाली महिला को समाज से अलग कर चाहे वह चुड़ैल का नाम हो या डायन का नाम देकर उनको समाज से बात करवा कर और जब वह अकेले पड़ जाती है तो उनका शारीरिक मानसिक शोषण किया जाता है और यह हम सब जानते हैं कहीं ना कहीं हम भी इस बात में शामिल होते हैं बिना यह जाने कि हम कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं या किसी महिला के साथ इतना बड़ा अन्याय कर रहे हैं

भारत महिला रिजर्वेशन की बात आती है या महिला संरक्षण फिर वहीं आ जाता इस शायद यह इसीलिए आज तक शायद 33% आरक्षण महिलाओं के लिए पार्लियामेंट में अटका पड़ा है क्योंकि हमारे देश में भी महिलाओं में जाति के आधार पर भेदभाव है जो महिलाएं उच्च वर्ग की है वह सक्षम है ज्यादा पढ़ी लिखी है और उनको आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार का इतना फर्क नहीं पड़ता लेकिन जो महिलाएं और दलित समाज से आती है जो जनजाति समाज से आती है नहीं आती है और दूसरे समाज से आती है महिलाओं को एक तरह का सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक संरक्षण अत्यंत आवश्यक है इसीलिए इसे रिजर्वेशन में जो महिलाओं के जाति के आधार पर सदन की बात कही गई है वह एक बहुत जरूरी मसला है जिस को समझते हुए महिलाओं को उनकी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक आधार पर उनके अधिकार सुरक्षित करने चाहिए

Picture of Dr. Anju Gurawa

Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

Leave a Replay

Leave a comment

Sign up for our Newsletter

We don’t spam you and never sell your data to anyone.