भारत में जाति व्यवस्था|

हमारे समाज में एक बहुत बड़ा तबका है जो यह कहने में जी जान लगा देता है कि भारत में जाति व्यवस्था नहीं है क्लास रूम में दोस्तों में रेस्टोरेंट में मोहल्ले में गली में पड़ोस में लोग इतनी बढ़ चढ़कर बात करते हैं किस जाति खत्म हो गई है दलित आगे बढ़ गए हैं अब कोई भेदभाव नहीं रहा|

  असल जिंदगी में यह अपनी से नीची जात में शादी नहीं करेंगे

  जो सफाई कर्मचारी घर पर आता है घर में उसको अलग कप में चाय देंगे

 अपनी अपनी रसोई में काम करने के लिए जाति देख कर ही काम वाली रखेंगे

 घर परिवार में अगर किसी ने दूसरी जांच में और खासतौर पर नीची जात में शादी कर ली तो उस महिला की प्रताड़ना करने में इसी परिवार की महिलाएं सबसे आगे रहेगी उसकी जाति का उल्लेख बार-बार करती रहेंगी

 कहने का मतलब यह है कि भारत में दोगला व्यवहार चलता है कहो कुछ करो कुछ

 कहने के लिए रिजर्वेशन ने यह कर दिया वह कर दिया जाति ने यह कर दिया वह कर दिया लेकिन यही लोग हैं जो सबसे पहले कहेंगे हम तो शर्मा है हम वर्मा है हम शर्मा है हम डरमा हैं हमारे परिवार में तो यह है हम इनका नहीं खाते उनका नहीं खाते हम इस में शादी नहीं करते उस जाति में शादी नहीं करते|

 एडमिशन के टाइम पे इन के बच्चों का एडमिशन हो जाए वह इनके लिए ज्यादा जरूरी है बनिस्बत इसके कि किसी एक व्यवस्था के चलते समाज का बड़ा तबका कितने  अत्याचारों से गुजरता है|

 यह वह लोग हैं जो एक से ज्यादा घर मांगते हैं सब की पक्की नौकरी चाहिए सबको गाड़ियां होनी चाहिए घर में परिवार में शहर में और कुल मिलाकर इनकी आर्थिक सामाजिक राजनैतिक सारी व्यवस्था अच्छी हो पक्की हो और उसके बाद भी  बचा कुचा अब हम ले लेंगे| ग्यारह सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में इनको उन लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं जो माय भूखी रहकर अपने बच्चों को पढ़ाती है जिन महिलाओं के साथ प्रताड़ना अत्याचार शारीरिक शोषण होता है जो इस देश में अपराध है कुछ ऐसे लोग हैं जिनको दो वक्त की रोटी नहीं मिलती और यह अपनी रसोई में बहुत सारा सामान कूड़ेदान में फेंक देंगे|

इनको कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में कितना बच्चा रोज बाजार में बेच दिया जाता है कितनी औरतें सड़क पर भीख मांगती है इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता हमारे देश की जीवन स्तर कितना निम्न है जिसमें लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतें खाना कपड़ा मकान और दवाई तक नहीं जुटा पाते|

 यह दोगले लोग हमारे देश में बहुत कम प्रतिशत में है पर इन्होंने हमारे देश के सारे संसाधनों को अपने हक में करके और यही लोग अखबार में बोलते हैं न्यूज़पेपर में आते हैं टीवी पर बोलते हैं और इन्हीं की आवाज सुनी जाती है इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश का जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग कितनी बड़ी संख्या में कितने कम संसाधनों में अपना जीवन बिताता है|

 हमारे देश में जाति व्यवस्था है नहीं बनाए रखने की कोशिश है और वह लोग इसको कोशिश रखते हैं जिनके पास संसाधन है जिन्हें चाहिए कि समाज का आधे से ज्यादा हिस्सा उनकी मजदूरी करें सस्ते दामों पर काम करने के लिए तैयार हो जाए और वह इनकी बराबरी ना कर पाए हमारे देश में ऐसी कोई सोच नहीं है कि हम मानव व्यवहार की और मानव बराबरी की बात करें जाति व्यवस्था खत्म करने की प्रयास हजारों सालों से हो रहे हैं लेकिन समाज का एक तबका है जो जाति को खत्म करना ही नहीं चाहता क्योंकि जिस दिन जाति खत्म हो गई सस्ता काम करने वाला मजदूर किसान कहां मिलेगा कहां पैसे दे पाएंगे यह कहां पैसे हड़प पाएंगे लोगों की इसलिए जाति उच्च वर्ग का एक हथियार है जिसके द्वारा वह सस्ता श्रम मजदूर और नौकर आसानी से पा लेते हैं|

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Dr. Anju Gurawa

Being a girl from the most backward district {Chittorgarh} from Rajasthan I was always discouraged to go for higher education but my father Late Mr B. L. Gurawa who himself was a principal in the senior Secondary insisted for higher studies and was very keen to get his children specially girls to get education.

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