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डॉ आभा देव हबीब :हम लड़ेंगे साथी

दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी भी रूप में जब आप नजदीक आते हैं  तो आप जानेंगे कि दिल्ली विश्वविद्यालय में आपको हमेशा महसूस होगा यहां संघर्ष लगातार चलता है कुछ लोग आपको हमेशा उस लड़ाई में शामिल मिलेंगे चाहे कोई भी परिस्थिति हो और इन लोगों के सामने अपने परिवार ,खुद की, और बाकी परेशानियां आती है जो कि आम आदमी के सामने आती है ऐसा नहीं है कि इनके जीवन में परेशानियां नहीं है लेकिन शायद उन्होंने उन परेशानियों को बहुत छोटा करके अपनी लड़ाई को बड़ा करना सीख लिया है और हर परिस्थिति में अपने आप को इस संघर्ष में शामिल रहने का हुनर सीख लिया है|

 आज का हमारा व्यक्तित्व डॉ आभा देव  हबीब इन्हीं  विरले लोगों में से एक है|

डॉ आभा देव हबीब दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा कॉलेज में फिजिक्स की प्रोफ़ेसर है और एक अलग छवि है उनकी एक अलग पहचान है और वह आपको अलग ही तरह से प्रभावित करेंगे उनका अपीरियंस बहुत सिंबॉलिक है और जब वह पब्लिक में लोगों के सामने आती है तो बहुत आत्मविश्वास से लबरेज रहती है एक अनुभवी महिला जिसने जिंदगी के और राजनीति के सारे उतार-चढ़ाव देखे | डॉ आभा देव हबीब  डूटा में में दो बार लड़ चुकी है और दोनों बार जीती है इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण चुनाव होता है  2013 से 15 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में एग्जीक्यूटिव काउंसिल रही है उसके अलावा दो दो चुनाव इन्होंने टूटा एक्सिक्यूटिव के लड़े और यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि सभी चुनाव इन्होंने जीते हैं दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यापकों में इनका प्रभाव है इनकी बात को गहराई से लिया जाता है सुना जाता है समझा जाता है और इनके संपर्क में आने के बाद लोग उनके अनुभव का फायदा उठाकर अपने निजी जीवन को और प्रोफेशनल जीवन को अच्छा बनाने में सफल भी होते हैं अगर राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो अब हबीब का कैरियर हमेशा उफान पर रहा है और इस स्थिति को पाने के लिए जो संघर्ष किया है वह आपको उनके बात करने के अंदाज में, खड़े होने के अंदाज में, और बहुत थोड़े ही समय में आप उस चीज को महसूस करेंगे कि आप किसी ऐसी शख्सियत से बात कर रहे हैं जो जिसने जीवन जिया है, देखा है, और लड़ा|

महिलाओं के किसी भी क्षेत्र में धाक जमाना या उस क्षेत्र में आगे बढ़ना बहुत आसान नहीं होता और सबसे महत्वपूर्ण चीज जो महिलाओं से जुड़ी होती है वह होती है एक मां बनना जब एक औरत वह चाहे प्रोफेसर हो एक ग्रहणी हो या किसी भी सामाजिक और आर्थिक तबके से संबंध रखती हो| मां बनते ही उसकी सारी सोच समझ और उसके चयन बदल जाते हैं| और सबसे महत्वपूर्ण बात जो सामने रह जाती वह बच्चा बच्चे की परवरिश और एक मां का कर्तव्य उसके बच्चे के लिए

 समाज की आपको इसी तरह से बनाता है| समझाता है दिखाता है और करवाता है| और उसमें अगर आप एक ऐसा रास्ता चुन लेते हैं जो संघर्ष का है तो मुश्किलें बढ़ जाती है |क्योंकि कहीं से कुछ बात ऐसी वैसी आएगी और जब आप सोचते हैं कि कहीं मैंने अपने कर्तव्य को तो नहीं अधूरा छोड़ दिया जो बच्चे के लिए मेरा था|

 19वीं शताब्दी में 19वीं शताब्दी में वही करती है कि जो समाज के बने बनाए हैं जिसमें कि ऐसी बातें हैं जो बोली नहीं जा सकती इससे आप पर लांछन लगेगा आपको कुलटा और गिरी हुई और कहां जाएगा उन्होंने बेबाकी से उन बातों को कहा ||डॉ आभा देव हबीब राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष रहा है वह किसी भी मोड़ पर हो किसी भी समय हो उन्होंने हमेशा मुस्तैदी से उस चीज को लड़ा| एक संगठन से लगातार जुड़ी रही| और उन महिलाओं की प्रेरणा बनी है जो कि सोचती है चुपचाप कि मुझे यह करना है मैं कैसे करूं किस तरह से मैं अपने इस काम को भी देखूं| जो मेरा संघर्ष है और उस काम को भी देखूं जो मेरा परिवार है बहुत अच्छी तरह से अपने उन कुछ कर्तव्यों को बाटा और अपने काम को अपने काम के बंटवारे को महत्व देकर अपने लिए वह जगह बनाई जिसमें वह अपने संघर्ष के लिए समय निकाल सके और जहां जरूरत है जितनी जरूरत है अपने परिवार के लिए मुस्तैदी से खड़ी रह सके इस बात को बताते हुए गर्वित महसूस करती है| उनके पति इरफान हबीब के बेटे हैं इतने पढ़े लिखे परिवार में जहां महिलाओं को अपने लेवल पर स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है| वह उनको ससुराल से मिला और इस बात को लेकर वह यह कहती है कि मेरा राजनैतिक कैरियर और मेरा निजी जीवन सफल रहा क्योंकि मुझे सहयोग देने वाले लोग मेरे परिवार और मेरे ससुराल वाले रहे हैं| मुझे आगे बढ़ाने में मेरे पति की अहम भूमिका रही है और मेरे बच्चे भी इस| मेरे बच्चे भी इस बात को समझते हैं| कि मेरा जीवन एक राजनीतिक है |और मैं एक पारिवारिक महिला होने के साथ-साथ समाज के कुछ दायित्व भी लगातार निभाना मेरी नियति है|

हबीब का अटूट संघर्ष और उनका अनवरत काम के प्रति समाज के प्रति समर्पण इस इन छोटे छोटे नेताओं का करारा जवाब है आभा काएक बड़ा बड़ा व्यक्तित्व है| राजनीतिक पार्टी या विचारधारा कोई भी हो महिलाओं का संघर्ष एक स्तर पर आकर एक बराबर हो जाता है अब हम उसे संघर्ष में एक नया रास्ता निकालते हैं और बहुत सारी दिल्ली विश्वविद्यालय की महिलाओं को प्रेरित करती है कि अपने परिवार और अपने एकेडमिक के साथ राजनीतिक कैरियर को आप संभाल सकते हैं यह हटकर सोच है मुश्किल है समाज के दायरे में नहीं आती है  स्पिरिट ऑफ द एज जिसको की वर्जिनवर्जीनिया वुल्फ अपने ही पिता स्टीफन लेस्ली से बहुत मुखबिर होकर वर्जीनिया उस पर सवालिया निशान खड़ा करती है और कहती है कि जिस देश में महिलाओं का जिक्र है उनका राजनीतिक, सामाजिक, मानसिक, आर्थिक, शैक्षिक, विकास नहीं को सिरे से खारिज करती है और अनजाने में आभा देव अपना लोहा मनवा लेती है| आभा देव अनवरत है |लड़ाका है| और हार नहीं मानने वाली  है अब यह रोज का काम है अब यह आदत है और यही आपका व्यक्तित्व और मकसद के लिए अपने काम और गहरी पैठ बना चुकी है लोगों के मन में भी और दिल्ली विश्वविद्यालय और उसकी पार की राजनीति में भी

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