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इसाबेल विल्कर्सन: जाति हमारी दुख का कारण|

इसाबेल विल्कर्सन जोकि न्यू की बेस्ट सेलर राइटर है और नियुक्त टाइम्स में और वर्ल्ड के जाने-माने अखबारों में लिखती है एडिटोरियल बोर्ड की मेंबर है और काले रंग की महिला है उन्होंने अभी एक किताब लिखी है उसका नाम है जाती हमारी  दुख का कारण|

 भारत में जाति व्यवस्था के आधार पर इज्जत सम्मान घर जमीन शादी विवाह के रिश्ते मोहल्ला भविष्य में पढ़ने लिखने की सुविधा का राजनीतिक स्तर सामाजिक स्तर आर्थिक स्तर सत्य होता है|

 जो लोग जाति का विरोध करते हैं उसके मुख्य दो कारण हैं या तो जो जाति व्यवस्था से दुखी है भविष्य खत्म करना चाहते हैं या वह जाति व्यवस्था के लाभान्वित है जो कि इसे खत्म करना नहीं चाहते भारत का उच्च वर्ग जिसको की जाति के नाम पर सम्मान इज्जत और उच्च होने का दर्जा मिलता है वह चाहता नहीं है कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई तो 4 औरतें   और पुरुषमिलकर तुरंत यह बात नहीं करेगी हमारी जात में तो यह होता है हमारी जांच में यह नहीं होता है हम तो ब्राह्मण हैं हम तो राजपूत हैं हमारे यहां ऐसा नहीं खाते हमारे यहां पैसा नहीं खाते हमारे शादी-ब्याह में ऐसा होता है इस सारे जिक्र खुद को ऊपर उठाने का और दूसरों को नीचे गिराने का एक सीधा-साधा तरीका है और उसमें वह इंसान जो उस उच्च जाति से संबंध नहीं रखता है शर्मिंदगी महसूस करता है क्योंकि उसके पास कुछ भी ऐसा कहने को नहीं है कि हमारी जात में यह होता हमारी जात में वह होता है दूसरा वाला देगा रे तू तो नीची जात का है तुम्हारी चाह तो नहीं है तुम तो गंदे लोग हो और यही कारण है कि उच्च वर्ग जाति व्यवस्था को बनाने में और निम्न वर्ग जाति व्यवस्था को खत्म करने में लगा रहता है
इसाबेल की किताब जाती हमारी  दुख का कारण कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातों पर सीधा सीधा हिसाब देती है

  सबसे पहला –  स्वर्ग से उतरी इच्छा:

 जाति के नाम पर उच्च वर्ग का दावा यह होता है कि वह स्वर्ग से उतरे हैं ऊपर का हिस्सा है और वह गंदगी का हिस्सा नहीं है जब ईश्वर ने ही उन्हें उच्च वर्ग में पैदा किया है और ईश्वर के मुख से पैदा हुए हैं तो वह अपने आप ही हक के और स्वाभिमान सम्मान के अधिकारी हैं और यहां इस उच्च वर्ग के तर्क को निम्न वर्ग काट नहीं सकता क्योंकि जो निम्न वर्ग है वह निम्न स्तर से पैदा हुआ है और उसके साथ उच्चता नहीं जुड़ी हुई है}

दूसरा:  विवाह की व्यवस्था एक ही जाति एक ही धर्म और एक ही व्यवस्था में

 विवाह एक जाति से दूसरी जाति में उत्साहित नहीं किए जाते जो जिस जाति में पैदा हुआ है जिसको जो तमगा मिला है उसी जाति में विवाह करना पसंद करते हैं इससे वह अपने खून की शुद्धता अपना धर्म अपनी जाति और परिवार की शुद्धता बनाए रखने में विश्वास रखते हैं इसी को अपना सर्वोपरि धर्म मानते हैं और अपनी ही जाति में जो उपस्थित है या जो उनके लायक मिलता है उन्ही में से ढूंढ कर शादी कर दी जाती है और यही जाति व्यवस्था को बनाए रखने का सबसे प्रमुख आधार भी होता है जो लोग अपनी जाति के बाहर विवाह विवाह नहीं करते उसका सीधा साधा कारण है कि वह जाति व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं|

निम्न जाति व्यवस्था के साथ सारे अवगुण जोड़ देना

जो जाति व्यवस्था में यकीन रखते हैं अपने से निम्न जाति के लोगों को अपने से नीचे और कमतर मानते हैं उनके साथ सारे वह गुण जोड़ दिए जाते हैं जिससे कि नीची जाति का व्यक्ति नीचा महसूस करें जैसे कि उनके खानपान के साथ गंदगी जोड़ देना व्यवहार बातचीत धर्म सामाजिक तीज त्योहार इन सबके साथ एक नीचता का और निम्न स्तर का त्योहार जोड़ देना जो नीची जाति से संबंध रखता है उसको अमानवीय घटिया बर्बर और अपने से नीचे बना दिया जाता है भारत में छोटा सा उदाहरण है कि ब्राह्मण अपने  अपने घर में रसोई को मंदिर का दर्जा देता है जबकि वही दलित पिछड़ा मुसल मुसलमान व अन्य जंगली जातियों के साथ उनके खान-पान के साथ शुद्धता और गंदगी छोड़ दी जाती है|

अपवित्रता”: 

निम्न जाति के आधार पर लोगों के जीवन स्तर में पवित्रता अशुद्धि यानी चिता जोड़ देना जैसे कि दलित पिछड़ा मुसलमान और अन्य जातियों के साथ उनके अपवित्र होने की बात कर देना और जैसे कि वैदिक पीरियड में कहा जाता था जिसका दोबारा जन्म होता है और नीच साथियों के साथ यह अधिकार बंद कर दिया गया कि तुम एक बार जन्म लेने के बाद दोबारा जन्म नहीं ले सकते जैसे की शुद्धिकरण वाला धागा पहनना जिसको कि हिंदू धर्म में उपनयन संस्कार कहा जाता है इस तरह से एक विशेष जाति में पैदा होने के साथ ही धर्म लिंग में पैदा होने की साथी पवित्रता को  जोड़ देना और यह पवित्रता महिलाओं के साथ ही जोड़ी जाती है जैसे कि महिला जब महावारी से होती है तो उसके साथ उसके अशुद्ध होने की बात छोड़ दी जाती है जो महामारी इस संसार को चलाने का आधार है मानव जीवन को आगे बढ़ाने का आधार है यह कैसे हो सकता है|

दुर्व्यवहार

 धर्म  कर्म या अन्य सामाजिक रीति-रिवाजों के आधार पर निम्न जातियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार को सही ठहराना जैसा की रामायण में भी कहा गया है कि सूर्पनखा की नाक कान काट दिए गए एक महिला के चलना कान काट दिए जाते हैं तो बहुत विभक्त दिखती है क्या किसी समाज को एक महिला के नाक कान काटने का अधिकार है और यही परंपरा बाद में कई वर्षों शताब्दियों तक चलती रही इसी तरह से एक दलित को मार देना या काले आदमी की हत्या कर देना कानून में अपराध नहीं माना गया था या महिला के साथ बलात्कार  एक महिला को सती होने पर मजबूर करना  यह सब हमारी सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में सहमति का हिस्सा रहा है जोकि अमानवीय है ऐसी कार्य है

 जाति रंग धर्म लिंग का आधार

 अपना रंग लिंग और किस यह किसी के बस में नहीं होता है तय करना फिर ऐसी बातों को आधार बना देना जो इंसान बदल भी ना पाए मैं महिला पैदा हुई हूं यह मैं बदल नहीं सकती मेरा रंग सांवला है काला है यह मैं नहीं बदल सकती मेरे मां बाप कौन है यह भी मेरे बस में नहीं है तो फिर इन चीजों के साथ मुझे एक तबके में डाल देना कि तुम्हारी जाती होगी तुम्हारा धर्म यह होगा तुम्हारा लिंग यह है और तुम्हारे साथ यह व्यवहार किया जाएगा यह अस्वीकार्य है और यही जाति का आधार बनाया गया

 अर्थव्यवस्था से अलग-थलग रखना

 अर्थव्यवस्था व शिक्षा मानव व्यवहार के उत्पत्ति का मुख्य कारण माना गया है और इनसे किसी समाज लिंग धर्म जाति भाषा के आधार पर लोगों को अलग-थलग कर देना एक सोची समझी राजनीति और सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा रहा है जिसमें कि उसे समाज में पैदा होने वाले आने वाली पीढ़ियों को गुलामी की जंजीरों में बांधने का एक पारंपरिक तरीका समाज ने बना लिया और जिसको धर्म का नाम देकर ईश्वर का नाम देकर किस्मत का नाम देकर लोगों को बेवकूफ बनाया गया

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